पीलीभीत टाइगर रिजर्व

Tiger Of PIlibhit Tiger Reserve

पीलीभीत टाइगर रिजर्व हिमालय की तलहटी से तराई के मैदानों में विस्तारित, उत्तर पूर्व में शारदा नदी द्वारा इंडो नेपाल बॉर्डर और दक्षिण पश्चिम में घाघरा नदी द्वारा सीमांकित ये जंगल जो तराई आर्क लैंडस्केप(TAL) का महत्वपूर्ण अंग है और terai duar savanna grassland eco system का उत्कृष्ट उदाहरण, भारत में ब्रिटिश काल के समय अंग्रेज अधिकारियों, आसपास के प्रमुख रजवाड़ों और नवाबों की मनपसंद शिकारगाह रहा, आज़ादी के बाद और वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के बीच के समय में भी यहां सीमित शिकार के परमिट होते रहे, इस बीच में कई विस्थापितों को यहाँ बसाया गया जिन्होंने बाद में जंगल भूमि पर जमकर अतिक्रमण कर लिया, डैम का विशाल जलाशय और ब्रिटिश काल में यहाँ बिछाई गई नहरों और उसके किनारे मार्गों के जाल के कारण इस क्षेत्र में एक अलग ही मनोरम दृश्य दिखाई देता है।

ये क्षेत्र विश्वपटल पे पर्यटन के मानचित्र पर तब उभरा जब इसको 9 जून 2014 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया, लेकिन सरकारी और उच्चाधिकारियों की शुरू से ही उपेक्षा के चलते परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं आया और ये विंडम्बना रही कि बजाय पर्यटन के फ़लक पर प्रसिद्धि प्राप्त करने के ये जंगल मानव पशु संघर्ष, बाघों द्वारा मैनईटिंग की घटनाओं के लिए कुख्यात हुआ और यहाँ के हर बाघ को किसी ज़माने के सुंदरबन के बाघों की तरह ही आदमखोर समझा जाने लगा।

इस बीच बाघों और तेन्दुओ की भी असामयिक और रहस्यमयी मौतों की तमाम घटनाएं इस लेख के लिखे जाने तक बदस्तूर जारी हैं, पेड़ो की अवैध कटान और पोचिंग की घटनाओं पर भी पूर्णतः अंकुश नहीं लग पाया है। इस क्षेत्र में मानव पशु संघर्षों के प्रमुख कारण जंगल का चौड़ाई में कम होना, जंगलभूमि पर अतिक्रमण होना और जंगल के चारों तरफ काफ़ी नज़दीक बसी सघन मानव आबादियों का होना भी है, अगल बगल बसनें वाली इस आबादी के ज़्यादातर लोग आज भी फॉरेस्ट प्रोड्यूस पर निर्भर करते हैं और ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जंगल में अवैध रूप से दाखिल होते हैं जिसके फलस्वरूप बाघ और इंसान अक्सर एकदूसरे के आमने सामने विपरीत परिस्थितियों में होते हैं और संघर्ष को जन्म देते हैं।

इन सब के बावजूद जो महत्वपूर्ण है वो ये कि तमाम विसंगतियों के चलते हुए भी पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों तेन्दुओ सहित अन्य रेयर स्पेसीज की बिल्लियों के कुनबे फल फूल रहे हैं, हरबिवोर्स जो उनके प्रे बेस हैं वो फ़लफूल रहे हैं, जंगल में पानी के प्राकृतिक स्रोतों सहित ग्रासलैंड, वुडलैंड्स की बहुतायत है, जो बाघों और तेन्दुओ को उनके अनुकूल रहवास उपलब्ध करवाते हैं और तमाम उपेक्षा के बाद भी फलने फूलने के अवसर प्रदान करते आ रहे थे और कर रहे हैं। इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं जिसके बढ़ने से ना सिर्फ जंगल के नज़दीक बसे लोगों को रोज़गार के नये अवसर प्राप्त होंगे बल्कि उनलोगों की जंगल पर निर्भरता को कम करके उनको जंगल से व्यवसायिक रूप से जुड़ने में मददगार भी होगा जिसका सीधा फायदा वन्यजीव संरक्षण को मिलेगा।

अगर कोई भी पर्यटक या वन्यजीव प्रेमी यहाँ आता है तो वो निराश नहीं लौटेगा, जंगल में प्रवेश करते ही चीतलों के झुंड आपको मिलना शुरू हो जायेंगे जो कुलांचे भरते हुए आपके सामने से जंगल रोड को क्रॉस करेंगे साथ ही आपको पाड़ा (हॉग डियर), सांभर, काकड़ और बारहसिंघों के बड़े झुंड भी देखने को मिलेंगे हिरणों की ये पांच प्रजातियां यहाँ पायी जाती हैं इसके अतिरिक्त नीलगाय, जंगली सुअर तथा पोखरों और नहरों के किनारे मग़रमच्छ आदि भी आपको आसानी से मिल जायेंगे। पक्षी प्रेमियों के लिए भी जंगल में खज़ाना भरा हुआ है लगभग 526 विभिन्न प्रजातियों के पक्षी इस तराई क्षेत्र में पाये जाते हैं शीत ऋतु में जलाशय में आपको विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षी आसानी से देखने को मिल सकते हैं साथ ही मार्च अप्रैल के महीने में अत्यधिक दुर्लभ बंगाल फ्लोरिकन भी देखने को मिल सकता है। जंगल के अन्य मुख्य और दुर्लभ आकर्षण ऊदबिलाव, स्लॉथ बियर फिशिंग कैट, लेपर्ड कैट, सीवेट, और लेपर्ड आदि हैं और रोमांच का चरम ये कि सुल्तान मेल 1, सुल्तान मेल 2, ट्राइडेंट फीमेल, सारा फीमेल और अन्य कई तराई टाइगर के बेहतरीन स्पेसीमेन जंगल में कहीं भी आपका स्वागत कर सकते हैं और एक ख़ास बात तराई जंगल में आज भी आपको बाघ बिना किसी एलार्म कॉल के अचानक ही मिल सकते हैं विशुद्ध अपने प्राकृतिक आचरण में ठीक वैसे ही जिसके लिए जिम कॉर्बेट और किनिथ एंडरसन जैसे लीजेंड्स ने अपनी किताबों में कहा बाघ…….

जैंटलमैन ऑफ जंगल

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